September 22, 2024
संत राम प्रसाद सेन

संत राम प्रसाद सेन : जिनका भजन सुनती थीं मां काली

हम इस बार एक ऐसे संत की कहानी लेकर आए हैं जिनका भजन सुनने के लिए आद्या शक्ति भी इंतजार करती थीं। जिनके लिए मां काली ने भी उनकी पुत्री का रुप धारण कर लिया था। हम सभी ने रामकृष्ण परमहंस के बारे में पढ़ा और सुना है कि मां काली उन्हें प्रतिदिन दर्शन देती थीं। उनसे बातें करती थीं और उन्हें आदेश भी देती थीं लेकिन बंगाल में रामकृष्ण परमहंस के पहले एक ऐसे संत राम प्रसाद सेन हुए हैं जिनके भजनों ने रामकृष्ण परमहंस को भी मां काली की भक्ति में डूबोया और नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर भी उनकी भजन शैली से प्रभावित थे।

राम प्रसाद सेन जी का जन्म

अठारहवीं सदी में बंगाल में ऐसे ही संत हुए हैं जिनका नाम था राम प्रसाद सेन। मां काली की भक्ति को लेकर उनके भजन आज भी पूरे बंगाल और असम में ‘रामप्रसादी’ के नाम से गाये जाते हैं। राम प्रसाद सेन जी का जन्म बंगाल के 24 परगना जिले के हलिशहर गांव में एक तांत्रिक वैद्य परिवार में लगभग 1718 ईसवी के करीब हुआ था। तांत्रिक परिवार में जन्म लेने की वजह से बचपन से ही उनकी मां काली में भक्ति रही थीं। राम प्रसाद के परिवार वाले उन्हें अपने पारिवारिक चिकित्सा के व्यवसाय में लाना चाहते थे लेकिन वो बचपन से ही मां काली की भक्ति में इतने डूबे रहते थे कि उन्हें इस व्यवसाय में कोई रुचि नहीं थी। परिवार वालों ने सोचा कि अगर उनका विवाह करा दिया जाए तो वो सांसारिक मामलों में रुचि लेने लगेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं ।

मां काली के बड़े भक्त थे रामप्रसाद जी

दरअसल विवाह उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ लेकर आ गया जिसने उनकी जिंदगी मां काली के चरणों में ही समर्पित कर दी। विवाह के बाद जब उन्हें उनके पारिवारिक गुरु माधवाचार्य जी से आशीर्वाद लेने के लिए भेजा गया तो गुरु ने उन्हें मां का ऐसा मंत्र दिया जिसके बाद उनकी सासांरिक गतिविधियों से रुचि खत्म सी हो गई। कुछ वर्षो बाद जब उनके गुरु ने महासमाधि ले ली तब राम प्रसाद सेन ने एक दूसरे तांत्रिक गुरु कृष्णानंद अगमवागिश जी से दीक्षा ली । कृष्णानंद जी स्वयं भी मां काली के बड़े भक्त थें और उन्होंने रामप्रसाद जी को मां की भक्ति के रहस्यों से परिचित करवा दिया।

हालांकि राम प्रसाद सेन के जीवन का अधिकांश भाग साधना में ही बीतता था लेकिन उनके पिता की मृत्यु के बाद गृहस्थी का भार संभालने के लिए उन्हें कोलकाता आना पड़ा। यहां उन्होंने दुर्गाचरण मित्र के यहां अकाउंटेट की नौकरी कर ली । लेकिन राम प्रसाद सेन यहां भी मां की भक्ति में इतने डूब गए कि बही खातों पर भी मां के भजन ही लिखने लगे। एक बार जब दुर्गाचरण जी ने बही खातों की जांच की और देखा कि उस पर मां के भजन लिखे हुए हैं तब उन्होंने राम प्रसाद जी की भक्ति को देख कर उन्हें नौकरी से निवृत कर दिया और कहा कि वो पूरी जिंदगी राम प्रसाद जी को मां काली के भजन लिखने के लिए वेतन देते रहेंगे। इसके बाद फिर क्या था राम प्रसाद जी इन सब झंझटों से मुक्त हो कर मां की भक्ति में रम गए।

कहा जाता है कि राम प्रसाद गंगा में अक्सर गले तक डूब कर मां के गीत गाते रहते थे और आने जाने वाले नाविक और सवार उनके भजन सुनने के लिए अपनी नावों को रोक देते थे। धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धी इतनी फैल गई कि बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला भी उनके भजनों के मुरीद हो गए । नवाब के इलाके नाडिया के एक जमींदार राजा कृष्ण चंद्र ने राम प्रसाद सेन जी को अपने दरबार में राज कवि के रुप में नियुक्त किया। राम प्रसाद जी ने विद्यासुंदर, काली कीर्तन, शक्तिगीति और कृष्ण कीर्तन जैसे भक्ति पुस्तकों की रचना की।विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने राम प्रसाद जी की तुलना अंग्रेजी के महान कवि विलियम बेक से की है। राम प्रसाद जी को पारंपरिक बाउल गीतों और कीर्तन को मिलाकर एक नए प्रकार के भक्ति संगीत के सृजन का भी श्रेय जाता है ।राम प्रसाद जी शाक्त संप्रदाय के पहले कवि थे जिनके गीतों को श्यामा संगीत के धुनों में सजा कर आज भी गाया जाता है।

राम प्रसाद सेन की मां काली की भक्ति

राम प्रसाद सेन की मां काली को लेकर ऐसी भक्ति थी जिसकी कथाएं आज भी पूरे बंगाल में सुनाई जाती हैं। एक ऐसी ही कथा है कि एक बार राम प्रसाद जी अपने घर के बगीचे के बाड़े को ठीक करने के लिए उसे बांस के खंभो से बांध रहे थे। इसमें उनकी बेटी उनकी सहायता कर रही थी। राम प्रसाद जी मां की भक्ति के भजन गाने में मगन थे। तभी उनकी बेटी को किसी ने बुला लिया और वो चली गई। लेकिन तभी मां काली उनकी बेटी के रुप में आई और राम प्रसाद की सहायता करने लगी। बाद में जब राम प्रसाद की बेटी ने बताया कि वो वहां थी ही नहीं और किसी और ने उनकी सहायता की थी तब राम प्रसाद को यकीन हो गया कि वो मां काली ही थीं जिन्होंने उनकी बेटी का रुप धर कर उनकी सहायता की थी।

ऐसी ही एक कथा है बनारस की अन्नपूर्णा माता (जो मां काली का ही एक अन्य रुप हैं) का राम प्रसाद को भजन सुनाने के लिए अनुरोध करना । कहा जाता है कि एक दिन राम प्रसाद गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तभी एक स्त्री ने उनका रास्ता रोक दिया और उनसे मां काली के भजन सुनाने के लिए अनुरोध किया। राम प्रसाद जी ने उन्हें तब तक इंतजार करने के लिए कहा जब तक वो गंगा स्नान कर के वापस नहीं लौट जाते । राम प्रसाद जी जब वापस लौटे तब वो स्त्री गायब थी। राम प्रसाद जब पूजा पर बैठें तो उनके ध्यान में माता अन्नपूर्णा आईं और कहा कि मैं तुम्हारा भजन सुनने आई थी। राम प्रसाद को बहुत पश्चाताप होने लगा । वो वाराणसी की तरफ चल पड़े। रास्ते में जब वो इलाहाबाद के संगम के पास थकान मिटाने के लिए एक पेड़ के नीचे सो गए तो माता सपने में आईं और कहा कि तुम्हें बनारस आने की जरुरत नहीं है। तुम यहीं से अपना भजन मुझे सुना सकते हो।

राम प्रसाद जी के महासमाधि की कथा भी बड़ी अनोखी है। दीपावली की रात काली पूजा का वक्त होता है। राम प्रसाद जी रात भर मां काली की पूजा करते रहे। जब दूसरी सुबह मां काली की मूर्ति का विसर्जन हो रहा था तब वो भी गंगा नदी में मां के भजन गाते हुए उतर पड़े और जैसे ही मां काली की मूर्ति का विसर्जन हुआ वैसे ही राम प्रसाद जी ने भी अपने प्राण त्याग दिए।

संत राम प्रसाद सेन जी की भक्ति का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि रामकृष्ण परमहंस घंटों उनके भजनों को सुन कर समाधि में चले जाते थे।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

HINDI