गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी रामभक्ति से न केवल भारत देश में बल्कि पूरे विश्व में जाने जाते हैं। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी एक बड़ी ही रोचक कथा है, कि बन्दर उनको जेल से छुड़ाते हैं। माना जाता था की तुलसीदास जी के पास बहुत सी चमत्कारी शक्तियां थीं। दरअसल एक समय की बात है कि एक मरे हुए ब्राह्मण को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था और उसी रास्ते से गोस्वामी तुलसीदास जी भी जा रहे थे तभी विधवा औरत ने तुलसीदास जी के पैरों पे गिर पड़ी और प्रणाम किया।
तुलसीदास जी ने उस औरत को सदासौभाग्यावती होने का आशीर्वाद दिया। औरत ने कहा मैं सदासौभाग्यावती कैसे हो सकती हूं, मेरे पति का अभी निधन हो गया है। तब तुलसीदास ने मन में सोचा कि ये शब्द तो निकल चुके हैं अब इसे जीवित करना पड़ेगा। तुलसीदास जी ने फिर सबसे अपनी आँखे बंद करने को कहा और राम नाम जपने लगे, जिससे वो ब्राह्मण दोबारा से जीवित गया।
संपूर्ण राज्य में चमत्कारी संत का बजा डंका
अब ये बात भला कहां रुकने वाली थी। हवा की तरह पूरे राज्य में ये बात फैल गई, तुलसीदास की इस ख्याति ने राजा अकबर को उनसे मिलने के लिए मजबूर कर दिया देखते हैं कि ये कैसा चमत्कार है। अकबर ने तुलसीदास को अपने दरबार में बुला लिया और कहने लगे कि हमारे किसी मरे आदमी को ज़िंदा कर दीजिए। लेकिन ये दिखवा तो गोस्वामी जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसके चलते उन्होने तुरंत ही राजा को मना कर दिया कि ये प्रकृति के प्रतिकूल है मैं ऐसा नहीं कर सकता, फिर अकबर ने उनसे जबरदस्ती चमत्कार दिखाने पर विवश किया। लेकिन फिर भी ऐसा करने से उन्होंने इनकार कर दिया, फलस्वरूप अकबर ने तुलसीदास को फतेहपुर सिकरी जेल में कैद करवा दिया।
राजा अकबर के दरबार में बंदरों ने किया तांडव
अब राजा को लग रहा था कि कुछ दिन जेल में रहेगा तो खुद ही दिमाक ठिकाने में आ जाएगा, लेकिन अकबर के सामने झुकने से उल्टा तुलसीदास जी ने हनुमान जी का नाम लिया और जेल में ही 40 दिनों में हनुमान चालीसा लिख दी और पाठ करने लगे। अब हनुमाज जी को प्रसन्न तो होना ही थी क्योंकि तुलसीदास तो हनुमान और श्रीराम दोनो के भक्त थे। फिर शुरु हुआ अकबर के राज्य में तांडव, बंदरों की सेना ने किले पे चढ़ाई कर दी। राजधानी और राजमहल में जैसा कभी नहीं हुआ ऐसा अद्भुत उपद्रव शुरु हो गया। बन्दर घरों में घुसकर सबको मारने लगे, सैनिकों और द्वारपालों को नोचने लगे, ईंटों को तोड़ने लगे और सबको उसी ईंट से मारने लगे। भयंकर परेशानी देखने को मिली, सभी बुरी तरह भयभीत हो गए। राजा भी परेशान हो गया तो उसने अपने मंत्रियों की सभा बुलाई और पूछा कि ये सब क्या हो रहा है? अकबर को बताया गया कि यह हनुमान जी का क्रोध है
और जहां तक ये सब तुलसीदास के कारण हो रहा है। तो अगर ये सब रोकना है तो उनको आजाद करना पड़ेगा, फिर भयभीत होकर अकबर ने तुलसीदास जी को मुक्त कर दिया। उनसे माफी मांगी और निवेदन किया कि किले और राजधानी को बंदरों से मुक्त कराएँ। फिर तुलसीदास जी के कहने पर सभी बन्दर जहाँ से आए थे वहीं चले गए और राज्य में शांति हुई राजा ने दोबार फिर कभी किसी संत को परेशान करने का सोचा भी नहीं।