December 24, 2024
सत्संग

सत्संग करता है मन की बुराईयों को खत्म

मेरे सनातन सद्गुरु के दोस्तों आपने अक्सर सुना होगा कि सत्संग करने का फल हमेशा अच्छा होता है । सत्संग करने से हमारे मन की बुराइयाँ खत्म हो जाती हैं और हमारा मन शुद्ध और सच्चा हो जाता है । आज सनातन सद्गुरु में हम आपको दो ऐसे दोस्तों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसमें एक दोस्त संत था तो दूसरा दोस्त एक चोर। लेकिन कैसे सत्संग ने उस चोर की जिंदगी बदल दी इसे पढ़ कर आप भी हैरान रह जाएंगे।

चोर और संत की कहानी

बहुत पुरानी बात है। एक गांव में दो दोस्त रहते थे। दोनो एक साथ ही खेलते कूदते और एक साथ ही खाते पीते भी थे, लेकिन वक्त बदला और दोनो में एक दोस्त किसी दूसरी जगह चला गया और दोनों दोस्त एक दूसरे से बिछड़ गए। वक्त बदलता गया और वो दोस्त जो गांव छोड़कर चला गया था वो अपने राज्य का एक बड़ा संत बन गया और चारो तरफ उसकी प्रसिद्धि फैल गई। वहीं वो दोस्त जो गांव में ही रह गया था वो बड़ा होकर एक चोर बन गया। वो रोज चोरियां करता और चोरी का धन इकट्ठा करता गया।

संत के सत्संग में उमड़ी भीड़

कुछ सालों बाद संत बना वो दोस्त अपने गांव आया और उसका प्रवचन सुनने के लिए गांव वालों की भारी भीड़ जमा हो गई । संत की प्रसिद्धि सुन कर उसका चोर दोस्त भी वहां आया और उसने सोचा कि इस भीड़ का फायदा उठा कर लोगों के धन की चोरी की जाए। लेकिन जैसे ही उस चोर दोस्त को उसके संत दोस्त ने देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उस संत दोस्त को पता नहीं था कि उसका दोस्त चोर बन चुका है । संत ने अपने चोर दोस्त को अपने साथ बिठा लिया और इसके बाद संत जी का सत्संग शुरु हो गया ।

संत ने मांगा अस्पताल के लिए दान

संत के प्रवचन को सुन कर गांव की जनता भाव विभोर हो गई ।जब संत का प्रवचन खत्म हुआ तो संत ने लोगों से कहा कि उनका एक सपना है कि गांव में वो एक अस्पताल बनवाएं, जहाँ रोगियों का इलाज मुफ्त में हो सके, लेकिन इसके लिए 10 लाख रुपये की जरुरत है। जिन्हें भी अस्पताल बनवाने में सहयोग करना हो वो सहयोग कर सकते हैं। इसके बाद संत ने एक डोनेशन की टोकरी सबके सामने रख दी।

सत्संग में चोर ने किया दान

संत जी के साथ इतना वक्त बिताने के बाद चोर को भी लगा कि उसे भी कुछ भलाई का काम करना चाहिए… उसने सबसे आगे बढ़ कर उस डोनेशन की टोकरी में दस हजार रुपये डाल दिये। इसके बाद और भी लोगों ने उसमें रुपये डालने शुरु कर दिये.. देखते ही देखते उस टोकरी में पांच लाख रुपये जमा हो गए।

संत के सत्संग में हुई चोरी

जैसे ही चोर को पता चला कि उसमें अभी पांच लाख रुपये गए हैं उसने सोचा कि मैंने बेकार ही दस हजार रुपये डाल दिये,कम भी डाल देता तो क्या होता ।उसने सोचा कि बेहतर हो कि वो अपने पांच हजार रुपये टोकरी से निकाल ले , लेकिन फिर कुछ सोच कर वो रुक गया। धीरे धीरे उस टोकरी में दस लाख रुपये भी आ गए । अब चोर का मन और भी डगमगाने लगा। उसने सोचना शुरु कर दिया कि अब दस लाख रुपये भी आ ही गए हैं तो बेहतर होता कि वो अपने दस हजार रुपयों में से साढ़े सात हजार निकाल कर ढाई हजार रुपये ही रहने देता ।लेकिन भीड़ इतनी थी कि चोर को अपने पैसे वापस निकालने का मौका भी नहीं मिला ।

धीरे धीरे उस टोकरी में 15 लाख रुपये जमा हो गए । यानि जितने की जरुरत थी उससे भी कहीं ज्यादा । अब चोर को लगा कि बेहतर हो कि वो सिर्फ एक हजार रुपये का ही दान करे और बाकि के नौ हजार रुपये मौका मिलते ही निकाल ले, लेकिन फिर भी उसे मौका मिल नहीं पाया क्योंकि दान देने वालों की भीड़ कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

सत्संग में मिला 20 लाख का दान

आखिर कार उस डोनेशन की टोकरी में कुल 20 लाख रुपये जमा हो गए। चोर को अब लगने लगा कि अब मौका है कि वो अपने सारे पैसे निकाल ले । संयोग से तभी लाइट चली गई और वहाँ चारो तरफ अंधेरा छा गया.. चोर को ठीक समय पर मौका मिल गया और उसने अपने दस हजार रुपये निकाल लिए। थोड़ी ही देर बाद सत्संग खत्म भी हो गया। चोर और संत सिर्फ दो लोग ही बाकी रह गए.. चोर ने अपने संत दोस्त की तारीफ करते हुए कहा कि तुमने आज बहुत अच्छा प्रवचन दिया और देखो लोग तुम्हारे इस सत्संग से कितने प्रभावित हुए कि तुमने दस लाख रुपये मांगे और लोगों ने तुम्हें 20 लाख रुपये दे दिये।

संत ने अपने चोर मित्र से कहा कि पता नहीं मुझे तुमसे ये पूछना चाहिए कि नहीं कि तुमने इसमें कितने पैसे का दान दिया। तब उस चोर मित्र ने जीवन में पहली बार सच बोलते हुए कहा कि मित्र मैंने एक भी रुपये का दान नहीं दिया ।

संत के प्रवचन से चोर का दिल पिघल गया

संत मित्र को इस बात पर बहुत दुख हुआ और उन्होंने कहा कि चाहे बीस लाख रुपये भी क्यों न आ गए हों । लेकिन मेरे प्रिय दोस्त पर मेरे प्रवचनों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा तो मेरा ये सत्संग किसी काम का नहीं है ।तब उस चोर मित्र ने एक बार फिर सच बोलते हुए कहा कि तुम्हारे सत्संग का सबसे ज्यादा प्रभाव मुझ पर ही पड़ा मित्र।“

संत ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वो भला कैसे? तब चोर ने अपने बारे में पहली बार बताते हुए कहा कि “मैं तुम्हारा  बचपन का दोस्त जरुर था लेकिन अब मैं एक चोर हो चुका हूँ मैने शुरु में दस हजार रुपये का दान भी किया था, लेकिन जैसे ही लाइट गई और चारो तरफ अंधेरा हो गया तब मेरी नियत में खोट आ गई थी और मैंने ये सोचना शुरु कर दिया था कि मैं ये सारे बीस लाख रुपये चुरा लूं।

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