जंगल में हवा चली, ताकतवर रोशनियां चमकीं, चट्टानें हवा में उड़ने लगी और फिर चमत्कार हो गय। यह चमत्कार कहीं और नहीं बल्कि भारत का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में हुआ। जिसे आज भी लोग भगवान शिव से जुड़े अनसुलझे रहस्यों के तौर पर देखते हैं। इस रहस्य के पीछे मुरैना में स्थित ककनमठ मंदिर है जिसे भूतों का मंदिर कहा जाता है।
क्यों है ये मन्दिर इतना अद्भुत
मुरैना के जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर सिहोनिया गांव में स्थित यह मंदिर अपने आप में अद्भूत है, जब आप इस मंदिर को देखेंगे तो चौंक जाएंगे क्योंकि इस मंदिर का निर्माण ही ऐसा है जिसे देखते ही ऐसा लगता है कि, यह मंदिर भरभराकर गिर जाएगा, लेकिन क्या आपको पता है कि बिना किसी चूना और सीमेंट का बना यह मंदिर पिछले एक हजार सालों से एक ही स्थान पर अडिग है आपको सुनकर हैरानी हो रही होगी लेकिन यह सच है, इससे भी बड़ा सच यह है कि, इस मंदिर का निर्माण एक के ऊपर एक पत्थर रखकर किया गया है, जिसे आंधी, तूफान और भूकंप के तेज झटके भी आज तक गिरा नहीं पाए हैं।
भूतों ने बनाया था ये मन्दिर
भगवान शिव को समर्पित इस अनोखे मंदिर के बारे में जब आप जानने की कोशिश करेंगे तो ऐसी कई बाते सुनने को मिलेगी जिससे शायद आपके रौंगटे खड़े हो सकते हैं, क्योंकि भूतों का मंदिर कहे जाने वाले इस मंदिर को भूतों ने ही बनाया है ऐसी किंवदंतियां हैं कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भूतों ने एक रात इस मंदिर को बनाना शुरू किया, जब भूत यह मंदिर बना रहे थे कि किसी महिला ने हाथ से चलने वाली चक्की चला दी और भूतों को इस बात का एहसास हुआ एवं वे मंदिर को आधा अधूरा छोड़ कर भाग गए, हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, इससे जुड़ा कोई सटीक प्रमाण मौजूद तो नहीं है लेकिन मंदिर के आधे अधूरे ढांचे को देखने के बाद इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता।
भारतीय राज्य परंपरा की धरोहर है यह मन्दिर
ककनमठ मंदिर को लेकर एक कहानी यह भी बताई जाती है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कच्छवाहा वंश के राजा कीर्तिसिंह के शासनकाल में हुआ था। राजा कीर्ति सिंह और उनकी पत्नी रानी ककनावती भगवान भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया जिसके बाद इस मंदिर का नाम ककनमठ मन्दिर पड़ा। हालांकि इन मान्यताओं के बीच जब बात विज्ञान की होती है तो विज्ञान इस मंदिर के रहस्य को जानने में ठीक वैसे ही असफल दिखता है जैसे हवा में झूल रहे लेपाक्षी मंदिर के तथ्य को जानने में। क्योंकि जिन पत्थरों के सहारे ये मंदिर बना है वो पत्थर आस-पास के क्षेत्रों में नहीं मिलते हैं। विज्ञान के इसी तर्क को लेकर लोग इसे भगवान भोलेनाथ का चमत्कार मानते हैं, लोगों का यह भी कहना है कि मंदिर में नाई जाति के नौ काने दूल्हे यानी ऐसे दूल्हे जिनकी एक आंख फूटी हो, जब एक साथ इस मंदिर परिसर में कदम रखेंगे तो यह मंदिर अपने आप भरभरा कर गिर जाएगा।
डकैतों के गढ़ में क्यो बसा है यह मन्दिर
115 फीट उंचा भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर चंबल के बीहड़ क्षेत्र में आता है, वही बीहड़ जिसे डकैतों का गढ़ माना जाता था हालांकि इस मंदिर में टूटी मूर्तियों के पीछे डकैतों का नहीं बल्कि अग्रेजी शासकों का हाथ था। दरअसल, हजार साल पुराने इस मंदिर में आपको हर तरफ हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां दिख जाएंगी, लेकिन कई खंडित अवस्था में मौजूद हैं, ऐसा माना जाता है कि मूर्तियों को विदेशी शासकों ने तुड़वा दिया था, जिसके अवशेष ग्वालियर के एक म्यूजियम में रखे हुए हैं। मंदिर की इन्हीं ऐतिहासिक तथ्यों को देखने के बाद आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसे संरक्षित घोषित किया हुआ है। लेकिन इस मंदिर की रक्षा भले ही आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया कर रही हो लेकिन यहां रात में किसी को रूकने की इजाजत नहीं दी जाती है।