साल 2022 में एक फिल्म आती है, कांतारा. जिसमें दैवीय नृत्य को दिखाया जाता है और भुता कोला की परंपरा को बताते हुए दो देवताओं का जिक्र किया जाता है जिसका नाम है गुलिगा देव और भगवान पंजुरली.
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क्या होता है भूता कोला-कौन है पंजुरली देव?
पंजुरली शब्द की उत्पति तुलि वर्ड पंजीदे कुरले से होती है. जिसका मतलब होता है युवा वराह. ऐसी मान्यता है कि, जब पहली बार पृथ्वी पर अन्न की उत्पति हुई तब वराह देव पृथ्वी पर आए. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जब मनुष्यों ने खेती करना चालू किया तब जंगली सुअर उनकी फसलों को खा जाते थे. इन सुअरों को जंगलों से खेतों में आता देख लोगों ने इसे कोई दैवीय शक्ति समझ लिया और इससे बचने के लिए वराह देवता की पूजा करनी शुरु कर दी. आज भी इसी देवता की पूजा दक्षिण भारत में की जाती है, जिसे बर्ने कोरपुनी नाम की एक प्रथा कही जाती है. इस प्रथा के तहत वराह देव को अन्न अर्पित किया जाता है, जिसके लिए एक बांस की टोकरी में कुछ अनाज रखा जाता है और उसके ऊपर नारियल के दो टुकड़ों में दीपक को जलाकर पंजुरली देवता को चढ़ाया जाता है. इस पूजा के दौरान एक प्राचीन नृत्य किया जाता है. जिसे भूता कोला कहा जाता है. इस प्राचीन नृत्य के बाद अंत में लोग पंजुरली देव को अन्न समर्पित करते हैं. यह एक प्रकार उनसे अपनी फसलों की रक्षा करने के लिए अनुष्ठान होता है. जिसको लेकर लोगों का आज भी मानना है कि, पंजुरली देव गांव वालों और उनकी जमीन की सुरक्षा करते हैं. वे हर साल भूत कोला के समय आते हैं और लोगों की समस्याओं के बारे में भी बताते हैं.
कैसे हुई पंजुरली देव की उत्पति ?
एक पौराणिक कथा की माने तो- एक वाराह के पांच पुत्र हुए जिनमें से एक नवजात बच्चा उन सबसे अलग हो गया और वो भूख प्यास से तड़पते हुए मौत के कगार पर आ पहुंचा. हालांकि उसी समय माता पार्वती वहां भ्रमण करते हुए पहुंची और उस नवजात वाराह के बच्चे को अपने साथ कैलाश लेकर आई. माता पार्वती अपने बेटे की तरह उसका लालन पालन करने लगी. समय बीता और उस बच्चे ने एक विकराल वाराह का रूप ले लिया, उसके दांत निकल आए जिससे उसे बड़ी परेशानी होने लगी. इस परेशानी से बचने के लिए वो पृथ्वी पर लगी सारी फसलों को नष्ट करने लगा… कुछ समय बाद संसार में भोजन की कमी हो गई. जब भगवान शंकर ने ये देखा तो उन्होंने सृष्टि के कल्याण के लिए उस वाराह के वध का निश्चय किया. जब माता पार्वती को ये बात पता चली तो उन्होंने महादेव से उसके प्राण ना लेने की प्रार्थना की तब महादेव ने उसका वध तो नहीं किया लेकिन उसे कैलाश को छोड़ पृथ्वी पर जाने का आदेश देते हुए कहा कि, तुम एक दिव्य शक्ति के रूप में पृथ्वी पर जाओ और वहां पर मनुष्यों की जमीन और उनकी फसलों की रक्षा करों. कहा जाता है कि तभी से वो वाराह पृथ्वी पर “पंजुरली” देव के रूप में निवास करने लगे और जमीन पर फसलों की रक्षा करने लगे. यही कारण है कि लोगों ने इन्हें एक देवता की तरह पूजना शुरू कर दिया और दक्षिण भारत में अधिकतर स्थानों पर इन्हें वाराह तो कुछ जगहों पर मुखौटा पहने हुए मनुष्य के रूप में भी दिखाया जाता है.
कौन है कल्लूर्ति देवी, पंजुरली देव से क्या है संबंध ?
प्राचीन कथाओं की माने तो- पंजुरली देव की एक बहन भी हैं जिनका नाम “कल्लूर्ति” है. इन दोनों का एक प्रसिद्ध मंदिर मैंगलोर के बंतवाल तालुका में मौजूद है. ऐसी मान्यता है कि वहीं पर कल्लूर्ति, पंजुरली देव से मिलती है और इन दोनों की पूजा एक भाई बहन के रूप में की जाती है जिन्हें एक साथ “कल्लूर्ति-पंजुरली” देव के नाम से भी जाना जाता है. तमिलनाडु में शायद ही ऐसा कोई परिवार हो जो कल्लूर्ति पंजुरली देव की पूजा ना करता हो.
कौन है गुलिगा देव-कैसे हुई इनकी उत्पति ?
भूता कोला में पंजुरली देव के साथ एक और देवता “गुलिगा” का भी जिक्र मिलता है… गुलिगा देव को शिवगणों में से एक माना जाता है. इनको लेकर एक कहानी सुनाई जाती है कि, एक बार मां पार्वती महादेव के लिए भस्म लेकर आईं, जिसमें कंकड़ निकला. महादेव ने उस कंकड़ को पृथ्वी पर फेंका तो उससे गुलिगा देवता पैदा हुए. पैदा होने के बाद गुलिगा देव ने भगवान शंकर से पूछा अब मैं कहां जाऊ तब उन्होंने गुलिगा देव को भगवान विष्णु के पास भेज दिया. इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें नेनाउला संके के गर्भ में भेजा, जिसके पेट को नौ महीने के बाद फाड़ते हुए गुलिगा देव बाहर आए. पृथ्वी पर आने के बाद वे खूब भूखे थे इसलिए उनको जो मिलता गया वह खाते गए. उन्होंने अनाज खाई, मछलियां खाई यहां तक कि सूर्य को भी खाने का प्रयास किया. अंत में भगवान विष्णु ने अपनी छोटी उंगुली उन्हें खाने को दिया, जिनसे उनकी भूख शांत हुई.
पंजुरली और गुलिगा देवता के बीच कैसे हुई दोस्ती ?
कहा जाता है कि एक बार पंजुरली देवता और गुलिगा देवता के बीच युद्ध हो रहा था, तभी मां दुर्गा उन दोनों के बीच में आईं और युद्ध को बंद करवाया. बताया जाता है कि, मां दुर्गा ने इस दौरान दोनों को साथ रहने का आदेश दिया. तभी से देव कोला त्योहार में लोग गुलिगा और पंजुरली देव की वेशभूषा में युद्ध करते हैं और उनकी आपस में दोस्ती भी करवाते हैं. दोस्तों, प्राचीन मान्यताओं की वजह से ही आज भी पंजुरली देव और गुलिगा देव को एक साथ पूजा जाता है. भले ही पंजुरली देव शांत स्वाभाव के हैं और गुलिगा देव उग्र. इसके बावजूद भी वे दोनों एक साथ रहते हैं.
क्या होता है भूता कोला ?
वास्तव में कांतारा की कहानी भूता कोला से ही शुरू होती है और भूता कोला पर ही खत्म. दरअसल, तुलु भाषा में भूता का अर्थ होता है दैवीय शक्ति और कोला का अर्थ होता है नृत्य यानी डांस. इसे दैवा कोला भी कहा जाता है. भूता कोला के साथ “दैवा नेमा” शब्द का प्रयोग भी होता है. ऐसी मान्यता है कि भूता कोला में उस नृत्य का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति के शरीर में जहां एक आत्मा प्रवेश करती है तो वही देवा कोला में एक साथ कई आत्माओं का प्रवेश होता है, जिसे दैवा नेमा भी कहा जाता है. भूता कोला का नृत्य पारंपरिक माना गया है अर्थात यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है, जो व्यक्ति भूता कोला में निपुण होता है वह अपने सबसे योग्य संतान को ही इसकी शिक्षा देता है और कुछ समय बाद उसका वही बेटा भूता कोला के नृत्य को करता है.
क्यों की जाती है पंजुरली देव की पूजा ?
पंजुरली देव को भगवान विष्णु के वराह अवतार के रूप में भी जाना जाता है, जिसकी पूजा कन्नड़ लोग करते हैं. कर्नाटक और केरल के कई हिस्सों में भी इनकी अराधना की जाती है. ऐसा मान्यता है कि, पंजुरली देवता उनकी रक्षा करते हैं. इन इलाकों में दैव कोला नाम से एक त्योहार मनाया जाता है, जिसमें वहां के लोग पंजुरली देवता की वेशभूषा में नाचते भी हैं.