कर्ण महाभारत के युद्ध का सबसे बड़ा भगौड़ा था, जिसने गंधर्व युद्ध को छोड़कर भाग गया. कर्ण सच्चा मित्र तो था लेकिन सबसे बड़ा झूठा भी था जिसने झूठ बोलकर शिक्षा ली. कर्ण महाभारत का बेचारा नहीं बल्कि महाभारत का सबसे बड़ा दुश्मन था जिसने दुर्योधन को बार बार उकसाता रहा कि, तुम पांडवों से युद्ध करों मैं तुम्हारे साथ हूं.
सूत से जुड़े तथ्य
कहा जाता है कि, महाभारत में सताया हुआ और सबसे बेचारा कोई किरदार है तो वो कर्ण है जिसको बचपन में ही उसकी माता कुंती ने छोड़ दिया और उस एक सूत्रपुत्र ने पाला. ये बिल्कुल सही बात हैं, कर्ण को अधीरथ ने पाला था जो एक सूत थे. लेकिन सूत की वजह से कर्ण को बेचारा बताना शायद ये गलत हो सकता है क्योंकि सूत संजय भी थे. जो धृतराष्ट्र के काफी खास थे साथ ही महाभारत युद्ध के मुख्य सलाहकारों में से एक थे.
वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत की माने तो जब एक क्षत्रिय पुरुष किसी ब्रह्माण स्त्री के साथ विवाह करता है तो उससे एक सूतपुत्र पैदा होता है. जो एक सारथी का काम करता है. कुछ लोग मानते हैं कि, सारथी का काम छोटी जाति के लोग करते थे. क्योंकि सूत का अर्थ क्षुद्र होता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि, शुद्र का अर्थ अज्ञानी भी होता है जिसको लेकर वेदों में बताया गया है कि, जब तक कोई व्यक्ति वेदों का अध्धयन नहीं करता तब तक वो शुद्र के समान होता है, चाहे वो किसी भी कुल में ही पैदा क्यों ना हुआ हो. यानी सूत के नाम पर किसी को बेचारा और दलित बना देना ये गलत हो सकता है, क्योंकि अज्ञातवास के दौरान जब पांडव विराट नगर जाते हैं तो वहां विराट के सेनापति कीचक से मुलाकात होती है जो एक से सूतपुत्र तो होता है लेकिन उसकी बहन सुदेष्णा की शादी राजा विराट से होती है जो यह साबित करती है कि, महाभारत काल में सूतों को यदि दलित या निम्न जाति का माना जाता तो उनकी शादी राजाओं से नहीं होती…
कर्ण को क्यों नहीं मिली ब्रह्मास्त्र की शिक्षा
कहा जाता है कि, गुरु द्रोणाचार्य ने कर्ण को शिक्षा देने से मना कर दिया था जो, सरासर झूठ है. क्योंकि महाभारत के आदिपर्व के अध्याय 131 में इस बात का प्रमाण मिलता है कि, कर्ण भी बाकी के राजुकमारों की तरह गुरु द्रोणाचार्य से अपनी प्रारंभिक शिक्षा ली थी. लेकिन एक दिन कर्ण एकांत में गुरु द्रोण से मिलने पहुंचता है और कहता है कि मुझे अर्जुन से युद्ध करने की अभिलाषा है मुझे ब्रह्मास्त्र का ज्ञान दीजिए, लेकिन गुरु द्रोण उसकी अभिमानी मंशा को समझ लेते हैं और ब्रह्मास्त्र की शिक्षा देने से मना कर देते हैं. इसके बाद कर्ण परशुराम के पास जाता है और आगे की शिक्षा झूठ बोलकर ग्रहण करता है. यानी महाभारत का यह प्रसंग ये बतलाता है कि, कर्ण की मनोदशा शुरू से ही झूठ, फरेब और बेइमानी की थी जो उसके अंतिम समय तक दिखता रहा… इसके अलावा कर्ण अर्जुन से बचपन से जलन की भाव रखता था जो किसी भी योद्धा की छोटी सोच को दिखलाती है.
गरीबी में नहीं बीता था कर्ण का बचपन
कर्ण को लेकर तमाम तरह की व्याख्या करने वाले लोग बताते हैं कि, कर्ण एक सारथी का लड़का था, जिसके घर में सुविधाओं की कमी थी लेकिन सच्चाई तो ये हैं कि कर्ण को जिसने पाला था उनका नाम अधीरथ था और अधीरथ की गिनती अंगराज के तेजवान और धनवान लोगों में होता था. यानी कर्ण के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग यदि कर्ण को इसलिए बेचारा माने क्योंकि वो एक रथ खींचने वाले का पुत्र था वो सही नहीं है.
दुर्योधन को युद्ध के लिए उकसाता था कर्ण
अधिकतर लोग तो ये मानते हैं कि महाभारत शकुनि और द्रौपदी की वजह से हुई थी लेकिन एक तथ्य ये भी है कि, महाभारत की युद्ध के लिए दुर्योधन को उकसाने का काम किसी ने किया था तो वो था कर्ण. महाभारत में जब दुर्योधन को सब समझाते हैं और कहते हैं कि युद्ध किसी विनाश से कम नहीं है. यहां तक कि, जब पांडवों को इंद्रप्रस्थ देने की बात आती है तो, शकुनि भी दुर्योधन को समझाते हैं और पांडवों को इंद्रप्रस्थ देने के लिए कहते हैं तभी कर्ण, दुर्योधन को इंद्रप्रस्थ देने से रोकता है. कर्ण बार बार महाभारत में पांडवों के प्रति अपनी जलन की भावना को दिखलाता है, जो यह बताता है कि कर्ण महाभारत का वो किरदार था जिसकी वजह महायुद्ध की आग बार बार सुलगती थी.
एक भगौड़ा और सौदेबाज था कर्ण
कौन कहता है कि कर्ण एक महान योद्धा और सबसे बड़ा दानवीर था. कर्ण एक महान योद्धा तो था लेकिन एक भगौड़ा सैनिक भी था जिसने बार-बार रणक्षेत्र से भागने का काम किया… चाहे वो विराट का युद्ध हो या गंर्धव का युद्ध, जिसमें दुर्योधन को गंर्धवों के द्वारा बंदी बना लिया जाता है. इसके अलावा कर्ण दानवीर नहीं बल्कि सबसे बड़ा सौदेबाज था जिसने हमेशा किसी को कुछ दान तो दिया लेकिन उसके बदले उससे कुछ ना कुछ लिया भी. चाहे वो इंद्रदेव से अपने कवचकुंडल के बजाय इंद्रास्त्र लेने की बात हो या फिर जन्म देने वाली माता कुंती से अर्जुन की मौत का सौदा करने की बात.