September 27, 2024

क्या है मल्टीवर्स ? इस संसार में कुल कितने हैं ब्रह्मांड ?

अधिकतर आप सुनते होंगे यह ब्रह्मांड बहुत बड़ा है, इतना बड़ा कि इसे अनंत माना गया है. अनंत अर्थात जिसका कोई अंत ना हो. इस अनंत ब्रह्मांड में एक नहीं बल्कि कई सारे ब्रह्मांड है. ढेर सारे ब्रह्मांड यानी मल्टीवर्स की जो थ्योरी है, उसका जिक्र हमारे पुराणों के कई कहानियों में मिलती है.

क्या है मल्टीवर्स का पौराणिक प्रमाण ?

मल्टीवर्स यानी ढेर सारे ब्रह्मांड को लेकर एक कहानी त्रिशंकु से जुड़ी हुई है … त्रिशंकु भगवान राम के पूर्वज इक्ष्वाकु वंश के राजा थे. इनका नाम सत्यव्रत भी था.  ये एक ऐसा यज्ञ करना चाहते थे जिसके प्रभाव से वे अपने शरीर के साथ स्वर्ग में जा सके. जब उन्होंने ये इच्छा अपने कुल पुरोहित महर्षि वशिष्ठ के सामने रखी तो उन्होंने इसे मर्यादा के विरुद्ध बताते हुए यज्ञ के लिए मना कर दिया. उनके पुत्रों ने भी इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया लेकिन त्रिशंकु ने अपनी स्वर्ग में जाने की जिद नहीं छोड़ी. लोगों की बातों को अनसुना कर वे यज्ञ के लिए दूसरे ऋषि की तलाश करने लगे. हालांकि इसी बीच वशिष्ठ ऋषि के पुत्रों को लगा राजा त्रिशंकु कई ऋषियों का अपमान कर रहे हैं और उन सबने उन्हें चांडाल बनने का शाप दे दिया. इस श्राप के बाद त्रिशंकु चांडाल हो गए. उनके भाई, मंत्री और प्रजा ने उनका त्याग कर दिया  

ऋषि विश्वामित्र के पास क्यों गए राजा त्रिशंकु ?

वशिष्ठ ऋषि के पुत्रों के शाप के बाद राजा त्रिशंकु चांडाल हो गए और वह बहुत दुखी होकर ऋषि विश्वामित्र के पास गए. ऋषि विश्वामित्र, महाराज गाधि के पुत्र और एक ऐसे महान तपस्वी जिन्होंने अपने तप के बल पर कई देवताओं के लिए बड़े- बड़े कार्य किए थे.अस्त्र और शास्त्रों की विद्या देने के साथ भगवान राम को सीता के स्वयंवर में ले जाने वाले जो मुनि थे उन्हीं का नाम था विश्वामित्र. राजा त्रिशंकु अंत में ऋषि विश्वामित्र के पास जाते हैं और अपने अंदर की इच्छाओं के बारे में बताते हैं. त्रिशंकु की बातों को सुन विश्वामित्र उन्हें स्वर्ग में भेजने का फैसला लेते हैं और राजा के लिए अपने तप से एक अलग सृष्टि की रचना करनी शुरू कर देते हैं. इसके लिए वह ऋषियों को निमंत्रण देते हैं और यज्ञ करवाना शुरू करते हैं. हालांकि इस अनुष्ठान में वशिष्ठ के पुत्रों के साथ देवतागण भी आने से मना कर देते हैं. 

विश्वामित्र ने क्यों की अलग ब्रह्मांड की रचना ?

त्रिशंकु की बातों को सुनने के बाद विश्वामित्र उन्हें स्वर्ग में भेजने के लिए अपनी यज्ञ अनुष्ठान को जारी रखते हैं और जैसे जैसे यज्ञ पूरा होता जाता है वैसे त्रिशंकु स्वर्ग की ओर बढ़ते चले जाते हैं. इस अप्राकृतिक घटना को देख देवताओं को डर लगने लगता है और वे त्रिशंकु को स्वर्ग में अपनाने से इंकार कर देते हैं. देवताओं के इस व्यवहार को देख विश्वामित्र क्रोध में एक अलग से ब्रह्मांड की रचना करनी शुरु कर देते हैं जिसमें ग्रह, नक्षत्रों के साथ स्वर्ग का स्थान भी रहता है. नए सृष्टि की रचना को देख देवतागण ऋषि विश्वामित्र के पास जाते हैं और उनसे इस कार्य को रोकने की प्रार्थना करते हैं. देवताओं की इन बातों को सुन विश्वामित्र अपने इस कार्य को रोक तो देते हैं लेकिन वह, उन्हें त्रिशंकु के लिए नए ब्रह्मांड के नए स्वर्ग में स्थान देने के लिए राजी कर लेते हैं.

जब विष्णु जी ने इंद्र को समझाई मल्टीवर्स की परिभाषा ?

ऋग्वेद के अनुसार- वृत्र नाम के राक्षस का वध करने के बाद इंद्र देव, इंद्रलोक आते हैं और उनकी इच्छा होती है वह एक भव्य महल बनवाएं. इसके लिए इंद्र, विश्वकर्मा को बुलाते हैं और एक बड़ा सा महल बनाने के लिए कहते हैं, विश्वकर्मा जी उनकी बात मान जाते हैं और वे उनके लिए सुंदर सा महल बनाते हैं, लेकिन इंद्रदेव को इस महल को देख खुशी नहीं होती है और वह विश्वकर्मा से इससे भी सुंदर महल बनाने की बात करते हैं. विश्वकर्मा फिर से सुंदर सा महल बनाते हैं इसके बावजूद भी इंद्र की इच्छा पूरी नहीं होती है. अंत में विश्वकर्मा जी को समझ में आ जाता है कि, वह फंस गए हैं इसके बाद वह विष्णुजी को याद करते हैं और भगवान विष्णु इंद्रदेव को सबक सिखाने के लिए एक ब्रह्माण बालक का भेष धारण करते हुए इंद्रदेव के पास पहुंच जाते हैं. उस बालक को इंद्रलोक में देख इंद्रदेव खूब प्रसन्न होते हैं तभी वो बालक इंद्र से पूछता है कि, आप यहां इस महल को क्यों बनवा रहे हैं. बालक की इन बातों को सुन इंद्रदेव महल की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि, वह अभी अभी वृत्र नाम के राक्षस का वध करके लौटे हैं इसलिए एक बड़ा महल बनाना चाहते हैं जो उनकी शान के बराबर हो… इसके बाद इंद्रदेव उस आधे बने महल को लेकर उस बच्चे से राय मांगते हैं. इस पर वह बालक कहता है कि, आपका यह महल सुंदर तो है लेकिन बाकी इंद्रों के महल से कम सुंदर है. इस पर इंद्र चौंक जाते हैं और कहते हैं, बाकी इंद्र ! क्या कह रहे हो तुम ?. इस संसार में केवल और केवल मैं इंद्र हूं और देवताओं का राजा भी मैं ही हूं. इस पर वो छोटा ब्रह्माण इंद्र को समझाते हुए कहता है कि हां, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, एक ब्रह्माम्ड में एक ही इंद्र और एक ही देवताओं का राजा होता है लेकिन इस संसार में एक ब्रह्मांड नहीं बल्कि कई ब्रह्माड है और हर ब्रह्मांड में अलग अलग ब्रह्मा, और अलग अलग इंद्रदेव होते हैं. इस पर इंद्रदेव फिर से उस बालक से पूछते हैं कि फिर इस संसार में कुल कितने ब्रह्मांड है. इस पर वो छोटा ब्रह्माण कहता है कि, जैसे किसी सागर के रेत में जितने कण होते हैं वैसे ही इस संसार में उतने ही ब्रह्मांड है. इंद्रदेव इन बातों को सुन हैरान हो जाते हैं कि, तभी एक चीटियों की झूंड उनके सामने से जाती हुई दिखाई देती है. इस पर वो बालक हंसता है जिसकी हंसी को देख इंद्र देव धीमे स्वर में उससे हंसने की वजह पूछते हैं. तभी वो छोटा ब्रह्माण बताता है कि, जिन चीटियों की झूंड को अभी आपने देखी वो पूर्व जन्म में एक इंद्र ही थी, क्योंकि हर जन्म में इंद्र एक छोटी योनि में जन्म लेते हैं और समय के साथ जैसे ही वह बड़े होते हैं उनका मन एक राक्षस को मारकर खुश होने लगते हैं. इसके बाद फिर से वह किसी और योनि में जन्म ले लेते हैं. इस तरह से अलग अलग ब्रह्मांडों में यह चक्र चलता रहता है. इन बातों को सुन इंद्रदेव का घमंड टूट जाता है और उन्हें यह ज्ञात हो जाता है कि, परम ज्ञान देने वाला यह छोटा बालक कोई और नहीं बल्कि स्वयं विष्णु जी है.

मल्टीवर्स को लेकर क्या कहता है श्रीमद्भागवत पुराण ?

इस संसार में मल्टीवर्स की जो व्याख्या है उसका जिक्र श्रीमद्भागवत महापुराण में भी मिलता है. श्रीमद्भागवत पुराण के एकादश स्कंध में इस बात का जिक्र मिलता है कि, भगवान कृष्ण उद्धव को समझाते हुए कहते हैं कि. हे उद्धव मेरे विभुतियों यानी मेरी महिमा की गणना नहीं हो सकती है. क्योंकि इस संसार में एक नहीं बल्कि कई ब्रह्मांड है जिसकी गिनती नहीं की जा सकती.

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

HINDI