शकुनि को महाभारत का सबसे बड़ा षड़यंत्रकारी माना गया है. कहा जाता है कि, शकुनि बार बार दुर्योधन और राजा धृतराष्ट्र को बरगलाने का काम करता था लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि महाभारत में एक किरदार ऐसा भी था, जिसकी वजह से पांडवों और कौरवों के बीच बात लड़ाई तक पहुंची थी.
Table of Contents
शकुनि की कहानी
शकुनि की कहानी की शुरुआत गांधार से होती है, जो आज का उत्तरी अफगानिस्तान है. गांधार उस टाइम पर 16 महाजनपदों में से एक था. इतिहास में आप इसको कंधार या कंदहार के नाम से भी पढ़ सकते हैं. शकुनि के पिता का नाम राजा सुबाल और माता का नाम सुधर्मा था. कहा जाता है कि राजा सुबाल के 100 पुत्र थे और एक पुत्री थी जिसका नाम गांधारी था और राजा सुबाल का जो 100 वां पुत्र था उसी का नाम शकुनि था. महाभारत के हर ग्रंथ में इस बात का जिक्र है कि गांधार नरेश की एक मात्र पुत्री गांधारी काफी खूबसूरत थी. जिसकी शादी पितामह भीष्म के कहने पर अंधे धृतराष्ट्र से हुई, जो आगे चलकर हस्तिनापुर के महाराज बने. लेकिन गांधारी और धृतराष्ट्र की शादी के बाद ऐसी कहानियां गढ़ी जाती है और बताई जाती है कि, पितामह भीष्म ने गांधार के सभी लोगों को मारने की योजना बनाते हैं और इसके लिए उन सबकों जेल के अंदर काफी कम-कम खाना दिया जाता है.
क्या शकुनि ने कौरवों के विनाश का लिया था संकल्प ?
इस कहानी का आधार गांधारी और धृतराष्ट्र की शादी के बाद से मिलता है जब दोनों के विवाह के बाद महामहिम भीष्म को बताया जाता है कि, गंधारी की शादी पहले एक बकरे से की जा चुकी है क्योंकि गांधारी मांगलिक है जिनकी कुंडली में यह दोष है कि जिससे भी उनकी पहली शादी होगी, उसकी मृत्यु हो जाएगी, इसलिए उस दोष से बचने के लिए गांधारी का विवाह पहले एक बकरे से कराई गई और उसकी मृत्यु भी हो गई. इस कहानी के बारे में बताने वाले लोग ये तर्क देते हैं कि, गांधारी की पहली शादी की बात सुन भीष्म नाराज हो जाते हैं और उन्हें लगने लगता कि राजा सुबाल ने हस्तिनापुर को धोखा दिया है, इसलिए महामहिम भीष्म गांधार के सभी लोगों को जेल में बंद करवा देते हैं जिससे सभी लोगों की मौत हो जाती और केवल राजा सुबाल का छोटा लड़का शकुनि बचता है… इस घटना को लेकर लोग यह भी बताते हैं कि शकुनि जब अपनी आंखों के सामने गांधार के लोगों को मरते हुए देखता है तभी वो कौरवों के विनाश का संकल्प लेता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा रचित महाभारत में शकुनि के ऐसे संकल्प का कही भी जिक्र नहीं मिलता है.
कौन था कर्णिक ?
आपने शकुनि के बारे में यह भी सुना होगा कि महाभारत युद्ध के पीछे का सबसे बड़ा मास्टर माइंड शकुनि ही था जो बार बार दुर्योधन और राजा धृतराष्ट्र को बरगलाने का काम करता था लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि महाभारत में पांडवों से युद्ध करने के लिए शकुनि बार बार दुर्योधन को रोकता है लेकिन दुर्योधन अपने परम मित्र कर्ण की बातों को सुनता है. इसके अलावा महाभारत में एक किरदार ऐसा भी था, जिसकी वजह से पांडवों और कौरवों के बीच बात लड़ाई तक पहुंची थी, वो किरदार कोई और नहीं बल्कि कर्णिक था, जो हस्तिनापुर में मंत्री और शकुनि का मित्र था.
धृतराष्ट्र-कर्णिक का वार्तालाप
द्रुपद नरेश के साथ हुए युद्ध को जीत लेने के एक साल बाद धृतराष्ट्र ने पांडु पुत्र युधिष्ठिर को युवराज के पद पर बैठाया. धैर्य, स्थिरता, नम्रता और मित्रता के गुणों से सुज्जित युधिष्ठिर ने प्रजा का दिल जीतने के साथ अपने पड़ोसी राज्यों के मित्रों का भी दिल जीत लिया. लोगों के अंदर से एक तरह से यह आवाज उठने लगी युधिष्ठिर से उत्तम युवराज कोई और नहीं हो सकता. केवल युधिष्ठिर ही नहीं बल्कि उनके चारों भाईयों ने खूब यश कमाना शुरू कर दिया. अपने पिता पांडू की मौत के बाद पांडव इस कदर समृद्धि और देश विदेश में नाम कमाने लगा कि धृतराष्ट्र को उन सबसे जलन होने लगी. यह ईष्या की आग इस कदर भड़की कि, राजा धृतराष्ट्र ने पांडवों को तबाह करने की योजना तक बना डाली, और यहीं पर कर्णिक का अहम रोल आता है जो पांडवों के खिलाफ धृतराष्ट्र को भड़काने का काम करता है. दरअसल, पांडवों की बढ़ती प्रसिद्धी से परेशान होकर धृतराष्ट्र अपने कुटनीतिक कलाओं में परांगत मंत्री कर्णिक को बुलाते हैं. कर्णिक को जैसे ही इस बात की भनक मिलती है… वैसे ही वह खुद पर घमंड करने लगता है. कर्णिक जब राजदरबार पहुंचता है तब महाराज धृतराष्ट्र उससे कहते हैं… हे कर्णिक ! मैं इन पांडवों के बढ़ रहे यश और समृद्धि से अंदर ही अंदर जल रहा हूं, मुझे ईर्ष्या हो रही है. तुम मुझे साफ साफ ये बताओं कि क्या मुझे इन पांडवों से संधि करनी चाहिए या शत्रुता. इस पर कर्णिक ने कहा कि, हे महाराज मैं अपनी बातों के लिए आपसे क्षमा मांगता हूं क्योंकि मेरी बातों से आपको शायद क्रोध आ सकता है लेकिन राजनीति का सिद्धांत यह कहता है कि राजा को सर्वदा दंड देने के लिए तैयार होना चाहिए.
महाराज ! यदि राजा को लगता है कि, मुझे किसी से खतरा है तो उसे अपना शत्रु मानकर मंत्र, बल, माया और इंद्रजाल का प्रयोग करके उसे नष्ट करने की योजना बनानी चाहिए. लेकिन जब समय अपने अनुकूल ना हो तो उस शत्रु को अपने कंधे पर लेकर ढोया तो जा सकता है लेकिन जैसे ही समय अनुकूल हो उसे साम, दाम दंड भेद का प्रयोग करके बर्बाद कर देना चाहिए.
कर्णिक ने धृतराष्ट्र के मन में कैसे जहर घोला ?
कर्णिक की बातों को सुन धृतराष्ट्र नम्र आवाज में कहते हैं कि. हे कर्णिक अब तुम ही बताओं कि आखिर हमारे पास वो कौन सा साम, दाम और दंड, भेद है जिससे हम पांडवों को बर्बाद कर सकते हैं. धृतराष्ट्र की बातो को सुन कर्णिक उन्हें एक जंगल की कहानी सुनाता है जिसमें चालाक गीदड़ के साथ उसके दोस्त बाघ, चूहा भेडिया और नेवला रहते हैं. ये पांचों मिलकर एक हिरण का शिकार तो करते हैं लेकिन उसका मांस अकेले वो चालाक गीदड़ खाता है, जिसने बाकी चार जानवरों के साथ मिलकर हिरण के शिकार की रणनीति बनाया होता है. अंत में कर्णिक इस कहानी के माध्यम से राजा को समझाते हुए कहता है कि, हे राजन ! एक चतुर राजा को उस चालाक गीदड़ के समान ही बनना चाहिए. जिसने डरपोक नेवले को भयभीत कर दिया तो अपने से वीर शेर से हाथ जोड़ लिया साथ ही अपने जैसे ही बराबर भेड़िए और कमजोर चूहे को अपना पराक्रम दिखाकर उस हिरण पर अपना अधिकार भी जमा लिया.
क्या कर्णिक की वजह से हुआ था महाभारत ?
अंत में कर्णिक धृतराष्ट्र से कहता है कि, महाराज ! आप ज्यादा मत सोचिए शत्रु चाहे. कोई भी हो उसे किसी भी तरह से खत्म करना चाहिए चाहे इसके लिए अर्धम के रास्तें पर ही क्यों ना चलना पड़ें क्योंकि आपको पता है पांडु पुत्र पांडव आपके 100 पुत्रों से बलवान और बुद्धि में भी तेज है. इसलिए आप ऐसी योजना बनाइए कि उनका विध्वंस भी हो जाए और आपको किसी भी बात का दुख भी ना रहें. कर्णिक अपनी इन बातों से धृतराष्ट्र के मन में पांडवों के प्रति जहर घोलने के बाद अपने घर चला जाता है और यही से पांडवों की बर्बादी की साजिश धृतराष्ट्र रचने शुरू कर देते हैं…
यह उस शकुनि के मित्र कर्णिक की कहानी की है, जिसने सबसे पहले धृतराष्ट्र के मन में पांडवों के प्रति जहर घोलने का काम किया था.. एक सच्चाई ये भी है कि, पांडवों को लाक्षागृह में जिंदा जलाने का षड़यंत्र मामा शकुनि ने नहीं बल्कि धृतराष्ट्र और दुर्योधन ने मिलकर रचा था..