पुराणों की माने तो- भगवान विष्णु का रामावतार महर्षि भृगु के श्राप की वजह से हुआ था. लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि, विष्णु जी के जो बाकी 23 अवतार थे वो भी महर्षि भृगु के श्राप से ही अवतरित हुए थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि, भगवान विष्णु को सबसे भयानक श्राप ऋषि भृगु ने दिया था और इसी शाप की वजह से विष्णु जी ही इस पृथ्वी पर अवतार लेते रहते हैं.
कौन थे शुक्राचार्य ?
मत्स्य पुराण शुक्राचार्य का वर्णन मिलता है. शुक्राचार्य एक महान ऋषि होने के साथ-साथ असुरों के कुल गुरु भी थे. इनके पिता महर्षि भृगु और मां काव्या माता थी. युवावस्था में शुक्राचार्य और बृहस्पति एक ही आश्रम में एक ही गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे जिनका नाम था अंगीरस. अंगीरस बृहस्पति के पिता थे. शास्त्रों की माने तो- शुक्राचार्य, बृहस्पति से अधिक ज्ञानी थे. उन्होंने ऋषि अंगीरस से वेदों की शिक्षा तो ली लेकिन कुछ समय बाद शुक्राचार्य को यह लगने लगा कि, मैं ऋषि अंगीरस के पुत्र बृहस्पति से अधिक ज्ञानी हूं इसलिए वह मुझसे पक्षपात कर रहे हैं, मन में आए इस विचार के बाद शुक्राचार्य ने ऋषि गौतम से शिक्षा लेनी शुरू कर दी. हालांकि हमारे पुराणों में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि, इंद्र के पक्षपात की वजह से बृहस्पति देवताओं के गुरु बन गए तो वही शुक्राचार्य असुरों का पक्ष लेना शुरू कर दिए.
मृत्यु संजीवनी विद्या क्यों प्राप्त करना चाहते थे शुक्राचार्य ?
शुक्राचार्य, अपने साथ हुए पक्षपात का बदला इंद्र और देवताओं से लेना चाहते थे… लेकिन देवतागण, असुरों से ज्यादा ताकतकवर थे, असुरों की ताकत को देख शुक्राचार्य को यह समझ में आ गया कि देवताओं को किसी साधारण योजनाओं से नहीं हराया जा सकता. इसलिए अंत में उन्होंने भगवान शिव के पास जाने का निर्णय किया. शुक्राचार्य, महादेव से मृत्यु संजीवनी विद्या प्राप्त करना चाहते थे. ताकि असुर अजय अमर बन जाए और यदि कोई असुर युद्ध में मारा भी जाए तो वे उसे जीवित कर सके… हालांकि शिव को प्रसन्न करने के लिए एक कठिन तप की जरूरत थी. लेकिन उससे पहले उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दानवों की देवताओं से रक्षा करने की थी. इसके लिए उन्होंने सभी असुरों को अपने पिता भृगु के आश्रम में छिपा दिया. हालांकि इस बात की भनक देवराज इंद्र को मिल गई, जिसके बाद वह दानवों को मारने के उद्देश्य से भृगु ऋषि के आश्रम पर हमला कर दिए. एक ओर जहां शुक्राचार्य, शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या में लीन थे तो वही दूसरी ओर इंद्र, देवताओं के साथ मिलकर असुरों पर हमला कर रहे थे. हमले के दौरान उस आश्रम में ऋषि भृगु मौजूद तो नहीं थे लेकिन उनकी पत्नी काव्या माता मौजूद थी.. देवताओं से खुद को बचाने के लिए सभी असुर काव्या माता के शरण में चले गए. इसके बाद काव्या माता ने इंद्र को स्थिर करने के लिए अपने दिव्य शक्ति का प्रयोग किया. जिससे इंद्र के शरीर का स्त्रीकरण हो गया यानी इंद्र एक नारी की तरह दिखने लगे. देवराज को ऐसा देख देवताओं का मन विचलित हो उठा और वे तुरंत भगवान विष्णु के शरण में गए.
विष्णु जी को क्यों करनी पड़ी एक स्त्री की हत्या ?
देवराज इंद्र को नारी बनता देख देवता भगवान विष्णु से बचाने की गुहार लगाते हैं. इस आग्रह को सुन विष्णु जी ने देवताओं को बचाने का फैसला किया. इसके बाद वह इंद्र के शरीर में प्रवेश किए और देवताओं की सहायता करनी शुरू कर दी. हालांकि कुछ समय बाद जैसे ही माता काव्या ने ये सब देखा तब उन्होंने विष्णु जी को चेतावती दी कि अगर वह इंद्र के शरीर को नहीं छोड़ते हैं तो वह जलकर भस्म हो जाएंगे. गुस्से से भरी माता काव्या ने विष्णु जी से कहा कि. हे नारायण ! यदि आप इंद्र के शरीर बाहर नहीं निकलेंगे तो मैं आपको समाप्त कर दूंगी. हालांकि भगवान विष्णु कुछ सोच पाते तभी इंद्र ने उनको भड़काना शुरू कर दिया और वह काव्या माता को पापी बताते हुए उनके ऊपर सुदर्शन चक्र छोड़ने की बात कही. देवराज की बातों को सुन भगवान विष्णु बिना कुछ सोचे काव्या माता पर सुदर्शन चक्र छोड़ देते हैं. जिससे महर्षि भृगु की पत्नी और शुक्राचार्य की मां काव्या माता की मौत हो जाती है.
ऋषि भृगु ने दिया था विष्णु जी को भयंकर श्राप
काव्या माता की मौत के बाद ऋषि भृगु अपने आश्रम पहुंचते हैं. जहां पर अपनी पत्नी को मरा देख क्रोधित हो उठते हैं और उसी क्षण भगवान विष्णु को श्राप देते हुए कहते हैं कि आपने एक महिला की हत्या करके अपने धर्म को तोड़ा है. इसलिए आप पृथ्वी पर कई बार जन्म लेंगे और मृत्यु के दर्द को सहन करेंगे. हे नारायण ! आप पुरुष योनि में पैदा तो होंगे लेकिन आपको स्त्री कष्ट भी सहना पड़ेगा. इस शाप के बाद महर्षि भृगु जल छीड़क कर अपनी पत्नी को जीवित तो कर देते हैं लेकिन वह क्रोध में इतना जल रहे होते हैं कि, भगवान विष्णु के बारे में कुछ भी नहीं सोचते. और महर्षि भृगु का यही वो भयानक शाप है. जिसकी वजह से इस पृथ्वी पर केवल विष्णु जी ही मनुष्य योनि में अवतार लेते रहते हैं. ये वही मानव योनि है जिसको लेकर हिंदू धर्म में माना गया है कि, कोई जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य का जन्म पाता है.