क्या आपने भोलेनाथ के दर्शन किए हैं…मान लो अगर आपको भगवान दिख गए तो पहचान जाएंगे। क्या पता आपके पड़ोस में भेष बदलकर भगवान ही रहते हों, क्या आपके घर का काम करने वाला रामू काका ही भगवान का रूप हो।
भगवान हैं या नहीं, पूजा पाठ करनी चाहिए या नहीं, कुछ समझ नहीं आ रहा, कोई बात नहीं, आज सनातन सद्गुरु आपको वो बताने वाला है, जिससे आपको ये तो यकीन हो जाएगा कि भगवान अपने भक्तों को हर पल देखता है, उसकी सारी हरकतों को वो नोट करता है।
भक्त हमेशा भगवान को खुद से ऊपर रखता है।
चलिए चलते हैं बिहार के मधुबनि में जहाँ विद्याधर नाम का एक विद्वान आदमी अपने काम तो करता ही है साथ-साथ भगवान शिव की पूजा करना भी अपनी ड्यूटी समझता है और प्रतिदिन भोलेनाथ की पूजा करता है भोग लगाता है कुल मिलाकर एक बच्चे की तरह अपने भगवान की सेवा करता है और हमेसा मन में ये सोचता है कि वो दिन कब आएगा कि मुझे भोलेनाथ के दर्शन होंगे लेकिन अब भगवान भी भगवान हैं उनके भक्त की कोई इच्छा हो और वो पूरी न करें ऐसा तो होना असंभव है ना।
एक दिन ऐसे ही किसी काम से विद्याधर जी जंगल के रास्ते जा रहे थे तो भगवान शिव ने एक गरीब का भेष बनाया आ गए विद्याधर के पास और बोले कि मेरा नाम उगना है। मैं बहुत गरी आदमी हूँ मेरे पास कोई काम नहीं है करने को, तो मैं अपने लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं ले पाता हूँ, इसलिए आप मुझे अपना नौकर रख लीजिए ऐसा सुनने के बाद सोच समझकर विद्याधर जी कहते हैं कि मैं इतना पैसे वला नहीं हूँ कि नौकर रख सकूं, मैं तुम्हें नौकर नहीं रख सकता तब वो गरीब आदमी उनसे बोला कि मुझे पैसे नहीं चहिए आप केवल दो बक्त की रोटी दीजिए। मैं उसी में खुश हूँ।
विद्याधर जी मान गए अब उगना घर के सारे काम करने लगा विद्याधर जी के यहाँ काम करता और खाना खाता कभी कभी उनकी पत्नि से डाँट भी खाता ऐसे ही भगवान अपने भक्त के यहाँ खुशी-खुशी रह रह थे।
सच्चा भक्त अपने भगवान को पहचान ही लेता है।
अब एक दिन की बात है, जब विद्याधर जी कहीं जा रहे थे उनके साथ में उगना भी था ज्यादा दूर का रास्ता था तो विद्याधर जी को प्यास लगी लेकिन अब जंगल में पानी कहाँ से मिले तो उन्होने उगना से कहा कि जाओ कहीं से पानी का इंतजाम करो मुझे प्यास लगी है।
अब भगवान शिव को इंतजाम की तो जरूरत थी ही नहीं थोड़ी दूर गए और अपनी जटाओं से गंगा जल निकाला और अपने मालिक की प्यास बुझा दी लेकिन इतने में विद्याधर को लगा कि यहाँ तो दूर-दूर तक गंगा नहीं हैं तो ये गंगा जल कहाँ से आया ऐसा मन में सोचकर वो अपने नौकर उगना के पैरों में गिर पड़े और रोने लगे कि आपको मैंने नौकर माना हे प्रभू मुझे क्षमा करें तब भगवान ने उनसे कहा कि मैं तो तुम्हारा नौकर ही बनना चाहता हूँ और तुम भी किसी को नहीं बताओगे कि मैं कौन हूँ मैं सभी के लिए उगना ही बनकर रहना चाहता हूँ उन्होने कहा आप मेरे घर में रह रहे हैं यही काफी है। मैं किसी से नहीं कहूंगा।
भगवान हुए अंतर्ध्यान
अब फिर से वैसा ही चलने लगा, भगवान शिव विद्याधर के सारे काम करते हैं। और उनकी पत्नि से डाँट भी खाते हैं लेकिन एक दिन तो हद ही हो जाती है जब कोई गलती हो जाने पर विद्याधर की पत्नि ने उगना को चुल्हे में जल रही लकड़ी से पीटा अब विद्याधर जी से ये सब देखा नहीं जाता और वो बोल देते हैं, कि जिसको तुम पीट रही हो वो साक्षात् भगवान शिव हैं।
बस इतना सुनते ही भगवान अंतर्ध्यान हो जाते हैं और विद्याधर के मानो प्राण ही निकल जाते हैं उनका एक ही उद्देश्य होता है कि मुझे उगना के दर्शन करना है। विद्याधर केवल उगना का ही नाम जपते रहते हैं फिर एक दिन भगवान उनको दर्शन देते हैं। और कहते हैं कि अब मैं उगना के रूप में तुम्हारे साथ नहीं रह सकता लेकिन मैं तुम्हारे यहाँ एक शिवलिंग के रूप में विराजमान रहूँगा जिसे उग्रनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाएगा। तभी से बिहार के मधुबनी में भगवान शिव साक्षात् निवास करते हैं आपने ऐसे भी भक्त हुए हैं जिनके यहाँ भगवान खुद नौकर बनकर आ जाते हैं क्योंकि भगवान अमीर-गरीब, जात-पात नहीं देखते जो सच्चा भक्त होता है वो उसको जरूर दर्शन देते हैं और उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।