September 22, 2024

आज भी जिंदा है पवनपुत्र हनुमान, 2055 में आएंगे मिलने ?

हममें से अधिकतर ने भगवान राम और भगवान कृष्ण के धरती से जाने की कहानियां तो सुनी हैं, लेकिन आज तक क्या किसी ने हनुमान के इस धरती से जाने की कोई कहानी सुनी है. शायद नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदू धर्म से जुड़े पुराण और ग्रंथों में हनुमान जी को अमर बताया गया है.

महाभारत में हनुमान जी के जीवित होने के साक्ष्य

पवनपुत्र से जुड़ी बातें और उनके अस्तित्व को लेकर जब आप महाभारत को पढ़ना शुरु करेंगे तो इस महाकाव्य के द्वित्तीय खंड में एक प्रसंग आता है. हनुमान और भीम के मुलाकात का. दरअसल, पांडव जब वनवास भोग रहे थे, तब पांचों भाइयों और द्रौपदी को अज्ञातवास में रहना पड़ा था. इस दौरान पांडवों के साथ द्रौपदी भी भेष बदलकर रहती थी. द्रौपदी एक आश्रम में बैठी हुईं थी तभी एक फूल उड़कर उनके पास आया, जिसकी सुगंध द्रौपदी को पसंद आ गई.. तब उन्होंने भीम को बुलाकर इस फूल को लाने के लिए कहा.

द्रौपदी की इच्छा पूरा करने के लिए भीन उस पुष्प की खोज में निकल पड़े और एक जंगल के द्वार पर जा पहुंचे. जहां रास्ते में एक वानर लेटे हुआ था. भीम ने उस वानर से हट जाने को कहा, हांलाकि वानर अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और खुद को कमजोर बताते हुए रास्ता नहीं छोड़ने की बात की. एक वानर के इस व्यवहार से भीम को क्रोध आ गया और वह अपनी शक्तियों के बारे में बताने लगे.. भीम ने वानर को अपना परिचय देते हुए कहा कि, वे कुंती और पवन के पुत्र है जिसके हनुमान भाई है. लेकिन ये सब सुनकर भी वानर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अंत में भीम को क्रोध आता देख वानर ने भीम से कहा कि यदि ज्यादा जल्दी है तो तुम  मेरी पूंछ उठाकर जा सकते हैं. भीम ने गुस्से में आकर वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की लेकिन वे इसे हिला भी नहीं पाए. तब भीम को अभास हुआ कि ये कोई साधारण वानर नहीं है.  भीम हाथ जोड़कर खड़े हो गए और वानर से परिचय पूछा. तब उस वानर ने भीम को बताया कि वह कोई साधारण बंदर नहीं बल्कि हनुमान है. इस मुलाकात में हनुमान जी, भीम सेन को प्रभु राम, माता सीता और लंका विजय की कहानी बताते हैं और कहते हैं कि सबके कल्याण करने वाले प्रभु राम लंका में राक्षसों का विनाश करते हैं और विभीषण को वहां के राजा घोषित करने के बाद अयोध्या लौट जाते हैं. हे भीमसेन मैं भी प्रभु राम के साथ अयोध्या गया और वहां पर उनसे वर मांगा कि, हे प्रभु जब तक आपकी कथा इस संसार में प्रचलित रहे तब तक मैं जीवित रहूं. प्रभु राम ने मुझे तथास्तु कहा. तब से मैं इस पृथ्वी पर जीवित हूं और माता सीता की कृपा से मुझे इस संसार में दिव्य भोग प्राप्त होते रहते हैं.

जिस भीम और हनुमान जी की कथा का जिक्र हमने अभी किया उसका लोकेशन उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास स्थित है. जिसे लोग हनुमान चट्टी के नाम से जानते हैं. हनुमान चट्टी बद्रीनाथ मंदिर से करीब 12 किलोमीटर, जोशी मठ से करीब 34 किलोमीटर और ऋषिकेश से करीब 285 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां आज भी बजरंगबली के होने के प्रमाण मिलते रहते हैं.

2055 में कहां किससे मिलेंगे हनुमान जी ?

साल 2014 में आई एक मीडिया रिपोर्ट्स से रुबरु करवाते हैं. जिससे आपको यह पता चल जाएगा कि, हनुमान जी एक बार फिर से साल 2055 में अपने खास भक्तों से मिलने वाले हैं… चौंकिए मत ! … यह सच है, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो- श्रीलंका के जंगलों में मातंग नाम की एक जनजाति निवास करती है. जिन्हें कबीलाई कहा जाता है. इन कबीलाई लोगों का कहना है कि आज भी उनसे मिलने हनुमान जी आते हैं. कुछ अंग्रेजी न्यूज पेपर्स ने इन जनजातियों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्म‍िक संगठन सेतु के हवाले से इस बात का खुलासा किया कि, हनुमान जी इस ट्राइब्स के लोगों से साल 2014 में मिलने आए थे और अब दोबारा 41 साल बाद यानि साल 2055 में इन मातंग जाति के लोगों से मिलने आएंगे.

कौन है मातंग समुदाय के लोग ?

सेतु नामक संगठन ने अपनी खोज में यह बताया कि  मातंग समुदाय का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है जो एक ऐसी जनजाति है जिसकी रहन – सहन और खान- पान अन्य जातियों से काफी अलग है. इस जाति के बारे में जब आप और रिसर्च करेंगे तो पता चलेगा कि, यह भारत के महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में भी रहती है जिन्हें कोम्माति के नाम जाना जाता है. जो भगवान राम और विष्णु के साथ हनुमान की भी पूजा करते हैं.

जोकू मंदिर में है हनुमान जी के पैरों के निशान —

हनुमान जी के पैरों के निशान शिमला के जाकू मंदिर में भी है. जिसको लेकर दावा किया जाता है कि जब हनुमान, लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने द्रोण पर्वत जा रहे थे तब उन्होंने यहा रुककर जाकू ऋषि से कुछ जानकारी ली थी. वहीं वाल्मिकी रामायण की माने तो- हनुमान जी माता सीता की खोज करते हुए जब लंका पहुंचे और माता सीता को प्रभु राम के बारे में संदेश दिया तब माता सीता उनसे  काफी प्रसन्न हुई और हनुमान जी को अपनी अंगूठी देते हुए अमर होने का भी वरदान दिया.

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