भारत का पड़ोसी देश नेपाल. एक ऐसा देश जहां 80 प्रतिशत से अधिक लोग धर्म और आस्था पर भरोसा करते हैं. यह एक ऐसा देश है जिसकी रक्षा खुद ऋषियों ने की और मुनियों ने ही बसाया. भारत में नवरात्र के दौरान छोटी कन्याओं को देवी समझ कर भोजन कराने की परंपरा तो है. लेकिन क्या आप नेपाल के उस प्रथा के बारे में जानते हैं जिसमें तीन से पांच साल की उम्र वाली बच्चियों को एक अनुष्ठान के भेंट चढ़ा दिया जाता है और इसके बाद उनकी जिंदगी किसी साधारण लड़की के जैसे नहीं बल्कि दुखों के साथ गुजरती है…
क्या है जीवित देवी की प्रथा ?
नेपाल में जीवित कन्या को देवी बनाकर पूजने का रिवाज हैं, जिन्हें ‘कुमारी देवी’ कहा जाता हैं और इन्हें साक्षात काली का स्वरुप मानकर पूजा जाता हैं. इस परंपरा को टेक कुमारी नामक प्रथा के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें तीन से पांच साल की उम्र में चुनी गई बच्चियां एक साधारण बच्ची नहीं बल्कि जीती जागती देवी बन जाती है. इस प्रथा को नेपाल में राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हैं. यह परंपरा करीब तीन सदी पुरानी बताई जाती है और इसी का देन है कि, यहां 11 कुमारी देवियां हैं. जैसे ही एक कन्या से देवी की उपाधि वापस ली जाती हैं, उस स्थान को भरने के लिए नई देवी का चयन शुरू हो जाता है.
किन बच्चियों को बनाया जाता है कुमारी देवी ?
नेपाल की कुमारी देवी का चयन के लिए जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्र बड़ी भूमिका निभाते हैं. माना जाता है कि कुमारी में 32 गुणों के साथ 32 तरह की विशेषताओं का ध्यान रखा जाता है. इसके लिए उनकी आंखों का रंग, उनकी आवाज की गुणवत्ता, उनके दांत के गुणों के साथ कुंडली में मौजूद ग्रह – नक्षत्रों को भी देखे जाते हैं जो उनके कुमारी देवी बनने में मदद करते हैं. इसके लिए उस छोटी सी बच्ची के सामने भैंस के कटे सिर को रखा जाता है, इसके अलावा राक्षस का मुखौटा पहने पुरुष नृत्य करता है. अगर जो भी बच्ची बिना किसी डर के इन परिस्थितियों को पार कर लेती हैं, उसे मां काली का अवतार मानकर पूरे नेपाल में पूजा की जाती है. कुमारी देवी के रूप में किसी भी बच्ची का चयन होना ही उसकी सबसे बड़ी व्यथा की घड़ी होती है. क्योंकि अधिकतर बच्चियां शाक्य और वज्राचार्य जाति से चुनी जाती है, जिन्हें 3 साल के होते ही उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है. उसके बाद 32 स्तरों पर उनकी परीक्षाएं होती हैं. जिसके बाद चुनी गई कन्या को ‘कुमारी’ के साथ ‘अविनाशी’ भी कहा जाता है. एक बच्ची से अविनाशी बनी कन्या को लेकर नेपाल के लोग यह मानते हैं कि, इस संसार में इस कन्या का अंत अब नहीं हो सकता,
‘देवी’ बनने के बाद कैसे बदल जाती है बच्चियों की जिंदगी ?
कुमारी देवी बनने के बाद उन्हें कुमारी घर में रखा जाता है, जहां वे ज्यादातर समय धार्मिक कार्यों बिताती हैं. वह केवल त्यौहार के समय ही घर से बाहर निकलती हैं लेकिन उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ते हैं. इस आस्था से जुड़ी कहानी में किसी भी बच्ची की जिंदगी तब और दूभर यानी कठिनाइयों से भर जाती है. जब कुमारी देवी बनी वो बच्ची शादी की उम्र में पहुंचती है लेकिन उससे शादी करने के लिए कोई लड़का तैयार नहीं होता.
दरअसल, तीन या पांच साल की उम्र में देवी बनी बच्ची से कुमारी देवी की पदवी उस समय छीन ली जाती है जब उन्हें या तो मासिक धर्म यानी पीरियड्स शुरू हो जाए या फिर किसी अन्य वजह से उनके शरीर से रक्त बहने लगे. कहा जाता है कि, यदि कुमारी देवी बनी उस बच्ची को मामूली सी खरोंच से भी खून बहने लग जाए या फिर उसकी पीरिड्यस शुरू हो जाए तब उससे देवी का पदवी छीन ली जाती है और उसकी जगह पर नई बच्ची की तलाश शुरू हो जाती है.
कुमारी देवी को सरकार देती है पेंशन–
कुमारी देवी की पदवी से हटने के बाद उस लड़की को आजीवन पेंशन तो मिलती है लेकिन कोई भी पुरुष उनसे शादी करने के लिए तैयार नहीं होता. नेपाली मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि जो भी पुरुष, कुमारी देवी रह चुकी लड़की से विवाह करेगा उसकी मृत्यु कम उम्र में ही हो जाएगी. इसलिए कोई भी पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता, जिस कारण उनमें से अधिकांश आजीवन कुंवारी ही रह जाती हैं.
इस परंपरा को क्यों मानते हैं नेपाल के लोग ?
किसी भी बच्ची का बचपन छीनने की जो परंपरा उसको लेकर यह सवाल किया जाता हैं कि, नेपाल के लोग ऐसा करते क्यों है. इसके पीछे का तर्क नेपाल में बार बार आने वाले भूकंप को लेकर दिया जाता है. कहा जाता है कि, अप्रैल 2015 में अत्याधिक तीव्रता से आए भूकंप ने नेपाल की जमीन को हिलाकर रख दिया. हजारों की संख्या में लोग इस प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गए. लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां मौजूद लोगों पर आंच तक नहीं आई और वो स्थान था जीवित देवी के नाम से प्रख्यात नेपाल की ‘कुमारी देवी’ का मंदिर. नेपाल के लोगों का आज भी मानना है कि ये जीवित देवियां आपदा के समय उनकी रक्षा करती हैं. जिनकी पूजा की शुरुआत 17वीं शताब्दी में ही कर दी गई थी. हालांकि इसके पीछे नेपाल में राजा जयप्रकाश मल्ला और देवी तालेजू की बेहद प्रसिद्ध कहानी भी सुनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि देवी तालेजू राजा मल्ला से रोज मिलने आया करती थी लेकिन उनकी पत्नी की वजह से वो एक दिन क्रोधित होकर चली गई. इसी बीच वह एक रात राजा के सपने में आई और उन्हें यह बताया कि वह रत्नावली के शाक्य और बज्राचार्य समुदाय के बच्चों में एक जीवित देवी के रूप में पुनर्जन्म लेंगी. इसके बाद जयप्रकाश मल्ल ने तालेजू की आत्मा से ग्रस्त बच्चों की खोज की और इस तरह से कुमारी देवी की परंपरा की शुरुआत हुई.