संत कनप्पा शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे. उन्हें 63 नयनार संतों में गिना जाता है. नयनार के बारे में पढ़ने पर यह पता चलता है कि, पहले वे शिकारी थे, लेकिन बाद में संत बन गए. कहा जाता है कि वे पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे. चूंकि शिकारी थे, इसलिए जो भी उन्हें मिलता था, उसे शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार उन्होंने सुअर का मांस भी शिव को चढ़ा दिया था.
कनप्पा नयनार की कहानी
संत कनप्पा से जो शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे. उन्हें 63 नयनार संतों में गिना जाता है. कहा जाता है कि उनके पिता भी एक शिकारी के साथ एक शिव भक्त थे. जो शिव के बड़े बेटे कार्तिकेय की पूजा करते थे. लेकिन कनप्पा श्रीकालाहस्तीश्वरा मंदिर में वायु लिंग की पूजा करता था, जो उन्हें शिकार के दौरान मिला था. आंध्र प्रदेश में स्थित यह मंदिर तिरूपति जिले के श्रीकालहस्ती शहर में बना हुआ है, जिसका बाहरी हिस्सा 11वीं सदी में राजेन्द्र चोल ने बनवाया था. हालांकि बाद में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं ने इस मंदिर का मरम्मत करवाया. श्रीकालहस्ती शहर में बना यह अनोखा मंदिर आज भी कनप्पा की आस्था का प्रतीक है,
कनप्पा की कहानी की शुरुआत थिन्ना नाम के एक शिव भक्त से होती है. दरअसल, थिन्ना को शिव की पूजा के नियमों की जानकारी नहीं थी. लेकिन उसकी श्रद्धा अत्यंत गहरी थी. कहा जाता है कि वे पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे, चूंकि शिकारी थे, इसलिए जो भी उन्हें मिलता था, उसे शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार उन्होंने सुअर का मांस भी शिव को चढ़ा दिया था. हालांकि, सबका ध्यान रखने वाले भोलेनाथ अपने इस भक्त की आस्था से काफी खुश थे, उन्हें पता था कि इसे पूजा करनी नहीं आती है ये ना तो मंत्र जानता है और ना ही विधि विधान.
कनप्पा ने अपनी आंख को क्यों छेदा ?
कनप्पा की आस्था को देख भगवान शिव ने अपने भक्त थिन्ना की परीक्षा लेने को ठानी और उस मंदिर में उस वक्त भूकंप के तेज झटके दिए, जब वहां बाकी साथियों और पुजारियों के साथ कनप्पा भी मौजूद थे. जैसे ही भूकंप के तेज झटके आए, सबको लगने लगा कि मंदिर की छत गिरने वाली है और सब मंदिर से भागे गए, लेकिन कनप्पा उस मंदिर में टिका रहा और अपने शरीर से शिव लिंग को पूरी तरह से ढक लिया ताकि शिवलिंग को कोई क्षति ना पहुंचे. मंदिर में स्थित उस शिवलिंग पर तीन आंखें बनी हुई थीं… जैसे ही भूकम्प के झटके थोड़ा कम हुए, कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी एक आंख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे हैं. कनप्पा को समझ में आ गया कि किसी पत्थर से शिवजी के एक नेत्र में चोट लग गई है. इसके बाद कनप्पा ने फौरन अपनी एक आंख बिना किसी हिचकिचाहट के अपने वाण से निकाली और उसे शिवलिंग पर लगा दिया. शिवलिंग पर कनप्पा ने जैसे ही अपनी आंख लगाई वैसे ही शिवलिंग से खून बहना तो बंद हो गया.
कनप्पा ने क्यों रखा शिवलिंग पर पैर ?
शिवलिंग पर बने एक आंख से जैसे ही खून रूकना बंद हुआ, वैसे ही उसकी दूसरी आंख से रक्त और आंसु निकलने शुरू हो गए. कनप्पा इसको देख काफी दुखी हुआ और अपनी दूसरी आंख को भी निकालने के बारे में सोचने लगा. लेकिन तभी उसके दिमाग में एक विचार आया कि जब मैं अपनी दूसरी आंख भी निकाल लूंगा तो बिल्कुल अंधा हो जाऊंगा, ऐसे में मुझे कैसे दिखेगा कि उस आंख को शिवलिंग में कैसे लगाना है. अंत में कनप्पा को एक उपाय सूझा, उन्होंने फौरन अपना एक पैर उठाया और पैर का अंगूठा ठीक उस आंख के पास लगा दिया, जहां शिवलिंग पर खून और आंसू बह रहे थे. उसी वक्त भगवान शिव प्रकट हुए और उससे खुश होकर उसकी आंखें एकदम ठीक कर दीं. यही वो घटना थी, जिसके चलते थिन्ना को नया नाम कनप्पा मिला था. और ये वही तस्वीर है जो आज भी भगवान शिव के प्रति कन्नप्पा की आस्था को दिखाती है.